वास्तु मे अदिति देव

अदिति 

कार्य - शांति, स्वयं को जानना 

चक्र - आज्ञा 


अथर्ववेद के अनुसार जगत का पालन करने वाली माता अदिति ही है, वास्तु में इस पद को शांति देने वाला माना जाता है. अदिति ऋग्वेद की मातृदेवी, जिसकी स्तुति में उस वेद में बीसों मंत्र कहे गए हैं। यह मित्रावरुण, अर्यमन्, रुद्रों, आदित्यों इंद्र आदि की माता हैं। इंद्र और आदित्यों को शक्ति अदिति से ही प्राप्त होती है।इनके बारह पुत्र हुए जो आदित्य कहलाए। ये पद खराब या दूषित होने पर मन में अंजना सा डर लगना, अपने आप से जुड़ाव ना रहना जैसी समस्याए होती है. अदिति कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी थीं। 

इनके बारह पुत्र हुए जो आदित्य कहलाए (अदितेः अपत्यं पुमान् आदित्यः)। उन्हें देवता भी कहा जाता है। अतः अदिति को देवमाता कहा जाता है। संस्कृत शब्द अदिति का अर्थ होता है 'असीम'।अदिति का एक पुत्र गर्भ में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था। परन्तु अदिति ने अपने तपोबल से उसे पुनरुज्जीवित किया था। उस पुत्र का नाम मार्तण्ड था। वह मार्तण्ड विश्वकल्याण के लिये अन्तरिक्ष में गतमान् है।


इंद्र और आदित्यों को शक्ति अदिति से ही प्राप्त होती है।अदिति अपने शाब्दिक अर्थ में बंधनहीनता और स्वतंत्रता की द्योतक है। 'दिति' का अर्थ बँधकर और 'दा' का बाँधना होता है। इसी से पाप के बंधन से रहित होना भी अदिति के संपर्क से ही संभव माना गया है।

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