वास्तु शास्त्र के अनुसार शत्रु व् झूठा कोर्ट केस कैसे देखें





शत्रु दो तरह के होते है आंतरिक और बाहरी, अगर हम कहीं ना कहीं आंतरिक रूप से अस्वस्थ है या खुद की हरकतों से परेशानी लाते है  behavior problem है तो हम स्वयं अपने शत्रु है.आइये चर्चा करते है इसी विषय पर 




 अंधकासुर और शिव युद्ध यहाँ से वास्तु शास्त्र की symbolic शुरुआत होती है, अंधकासुर = अंधक यानी अँधा, वैदिक भाषा में यदि हम अपने लक्ष्यों के बारे में ही नहीं जानते या अपनी क्षमता या अपनी अनेक अनावश्यक इच्छाओं में जकड़ा हुआ है वो अँधा है. 

असुर - जो सुर में नहीं है यानी लय या धुन  बिगड़ा हुआ है. 

शिव - परम चेतना जिन्हे हर वक़्त अपने ऊपर कण्ट्रोल है. 

तो यदि आपको अपने अंदर के शत्रु के लिए ईशान कोण को बैलेंस करना है वहां बैठ कर ध्यान करने से बहुत सारे आईडिया प्राप्त होते है और जब भी हमारा बहरी पक्ष से भी  वाद विवाद हो तब भी आंतरिक पक्ष सही करना चाहिए. इससे आप वैचारिक रूप से बहुत उन्नत हो जाते है. 

बाहरी शत्रु - जब किसी कारण वश कोई व्यक्ति शत्रु बन जाए और परेशान करने लगे तब शक्ति (आंतरिक मजबूती) और  इंद्र और कार्तिकेय की शक्ति को मजबूत करना चाहिए.  पूर्व दिशा बाहरी प्रभाव को दर्शाती है यहाँ दोष होने पर हम बाहरी आक्रमण से कमजोर रहते है. 

शक्ति नार्थवेस्ट को बोलते है इधर हनुमानजी का चित्र लगाना चाहिए क्यूंकि रूद्र यही से कार्य करते है जो कभी हारते नहीं है. 


 इंद्र और देव सेनापति कार्तिकेय के लिए पूर्व दिशा में एक पौधा लगा सकते है और उसे स्वयं सींचे और उसी से अपने जीतने की कामना करे, इस दिशा में छोटी सी पीली पोटली में सौंफ (बृहस्पति+मंगल) रखने से  भी शत्रु परास्त होंगे. 



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